अपने ख़्वाबों को हक़ीक़त में बदलने,
निकले थे हम सुकून की तलाश में ।
एक अरसे से सोए नहीं थे हम,
उड़ना जो था आसमान में पंख फैला के ।
मंज़िल थी ख़्वाब और ख़्वाब ही थे मंज़िल,
जिनकी तलाश में हम चलते गये।।
रास्तों से ओर रास्ते निकलते गये,
और हम खो गए एक भूलभुलैया में।
अपने ख़्वाबों को हक़ीक़त में बदलने,
निकले थे हम सुकून की तलाश में ।
जितना चले मंज़िल की आस में,
उतने बढ़ गये अपनों से फ़ासले।।
मंज़िले तो मिलीए ख़्वाब भी पूरे हुए;
पर आँखो में नींद और दिल में सुकून अभी भी नहीं।
चेहरे की मुस्कुराहट और खुद का वजूद कहीं खो गया,
अपनों का साथ भी छूट गया ।।
अपने ख़्वाबों को हक़ीक़त में बदलने,
निकले थे हम सुकून की तलाश में ।
ज़िंदगी की सच्चाई बस इतनी है, ख़्वाहिशों की चाह में;
खुद की रूह को ज़िंदा और अपनों को पास रखना;
फिर मंज़िल भी तेरी, सुकून भी तेरा।।
