आज फिर मैं और मेरी तन्हाई साथ बठे हैं।
तन्हाई बोली कहाँ गया वो -
जिसने हाथ तेरा थामा था; जिसने इस बेरंग सी ज़िंदगी में रंग भरे थे ।
जिसने ख़्वाब कई नए बुने थे: जिसने वादा किया था उम्र भर साथ निभाने का।।
आज फिर मैं और मेरी तन्हाई साथ बठे हैं।
अब कैसे मैं समझाऊँ मेरी तन्हाई को-
जब चाँद यहीं; उसकी चाँदनी भी यहीं है ।
जब सूरज यहीं; उसकी रोशनी भी यहीं है ।
जब बादल यहीं तो उसकी बरसातें भी यहीं हैं ।।
फिर मैं कैसे अकेली ?
आज फिर मैं और मेरी तन्हाई साथ बठे हैं।
माना बढ़ गये हैं फ़ासले; पर यादें तो यहीं हैं ।
आँखो से ओझल हो गया; पर बंद आँखो में तो यहीं है ।
हाथ से साथ छूट गया ; पर जज़्बातों में तो यहीं है ।।
आज फिर मैं और मेरी तन्हाई साथ बठे हैं।
जैसे हर रात के बाद सवेरा आता है
जैसे हर धूँद के बाद रोशनी आती है;
वैसे ही ऐ मेरी तन्हाई तेरे बाद उसका साथ फिर आयेगा।
कुछ तो अच्छाई होगी मेरे में भी; की ढूँढता हुआ मेरा पता वो आएगा।
आज इस भीड़ में मैं तन्हा सही; पर कल फिर मुस्कुराता हुआ पल आएगा ।।
आज फिर मैं और मेरी तन्हाई साथ बठे हैं।।।
